Friday, 20 April 2007

मैं आ गया हूँ !

एक स्पष्टीकरणः कई महीने पहले आपने जो पढ़ा (नीचे पढ़िए) वह मैंने नहीं लिखा था। उसे लिखने वाले हमारे मित्र और शुभचिंतक अनामदास ही रहना चाहते हैं। उन्होंने जो लिखा उसमें सुधार कर लीजिए। न मैंने दुनिया बहुत देखी और न ही मैं अनुभव बाँटने के उद्देश्य से यहाँ आया हूँ। इस बात पर भी कोई वज़न नहीं कि मेरी लिखी बातों की क़द्र की जाए। एक घोषणा ये कि इस ब्लॉग पर सेंसर की कैंची नहीं चलेगी। अगर निहायत ही ग़ैरज़रूरी तौर पर गुप्तांगों का ज़िक्र न किया गया हो तो मुझे पड़ने वाली गालियाँ भी यहाँ प्रकाशित होंगी। आदिविद्रोही मेरे प्रिय ऐतिहासिक पात्रों में से है इसलिए उन अनामदास बंधु का दिया ये नाम मैं बदल नहीं रहा हूँ। लेकिन न तो तलवार भाँजने का दावा है, न कम्प्यूटर की स्क्रीन से झंझावात उठाने का इरादा।

दो हज़ार सात की आख़िरी तारीख़ है आज -- 31 दिसंबर. उम्मीद है अगले साल भी मिलेंगे.

(ये थी वो घोषणा जो हमारे मित्र ने हमारी ओर से कर दी थी.)

बहुत हो गया, बहुत कर ली नौकरी. बहुत कमा ली दिहाड़ी. अब आप लोगों से बात करने का समय आ गया है. मैंने रामझरोखे बैठकर बहुत दुनिया देखी है अब आपके साथ कुछ अनुभव बाँटना चाहता हूँ. आप लोग पढ़े-लिखे आदमी हैं, ब्लॉगर हैं, आप शायद मेरी बातों की कद्र करेंगे. मैं हर रोज़ तो नहीं लेकिन दो-चार दिन में एक ब्लॉग लिखने की कोशिश करूँगा. मेरा नाम मेरे चरित्र के अनुरूप है और मैं यहाँ जो कुछ लिखूँगा उसी के ज़रिए जाने जाने की इच्छा है.

मैं अपने विचार खुलकर लिखूंगा और आप अपनी प्रतिक्रिया खुलकर दीजिएगा.

जल्द आ रहा है, इंतज़ार कीजिए.

10 comments:

dhurvirodhi said...

स्वागत है आपका
आप आदिविद्रोही
मैं धुरविरोधी

Sanjeet Tripathi said...

स्वागत है आदिविद्रोही का!

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

आदिविद्रोही जी ,नमस्कार्.
आपके ब्लाग पे आया,दरअसल आपने मेरे ब्लाग पे कामेंट दिया है.
मै आपकी बातो से सहमत हूं.मैं ने यह आलेख बीबीसी से लिया है. हां गलती यह हुई कि मैं ने बीबीसी का जिक्र नहीं किया है.
इससे पहले भी मैंने २ आलेख वहां से उठाया था,लेकिन साभार मै ने बीबीसी लिखा था.
अब अगर होगा तो साभार बीबीसी जरूर् रहेगा.
आपका
गिरीन्द्र

ePandit said...

आ जाओ भईए स्वागत है आपका। अब जरा धूमधाम से लिखना भी शुरु करो।

Reyaz-ul-haque said...

लिखेंगे कब. खली टिपिआइयेगा ही? इंतज़ार है भाई. आइए...

VIMAL VERMA said...

भाई मेरे,ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है,आदिविद्रोही आपने अच्छा नाम चुना है,कभी मैने आदिविद्रोही स्पार्टकस नाट्क में लेन्ट्लुस बाटियाटुस का रोल किया था,इस लिये आपके इस नाम पर आकर्षित हुआ और चला आया, आप दिल से हम स्वागत करते हैं !!!

सुनील सुयाल said...
This comment has been removed by the author.
सुनील सुयाल said...

संजीव सिन्हा जी,के लेख पर "संघ प्रेमी की भावना का लेबल तो लगा दिया जनाब अपने गिरेबान में भी तो झाकना था !आपके इक -इक प्रश्न का सटीक उत्तर मेरे पास है मगर जनाब "जो सुप्त अवस्था का स्वांग करे लेटा हो उसे केसे ..उठाया जाय........? और हाँ किसी भी प्रकार का विद्रोह, सृजन का आधार नहीं बन सकता..........आपका स्वागत व शुभकामनाये

शरद कोकास said...

यदि आप सक्रिय हैं तो क्रपया मेरा ब्लॉग देखे मित्र .. -पुरातत्ववेत्ता

Unknown said...

I think (not only think ,also realize by your comment on RSS)you are very poor in History.You, like people don't know anything, but always crying.So my advice is 1st refresh your knowledge ,then give any comment publically.
One more thing please upload your complete profile, so that we could know who are u.